ये जिन्दगी बता तेरी क्या कहानी लिखूँ।।

ये जिन्दगी बता तेरी क्या कहानी लिखूँ।।
मोहब्बत की दास्तां या आखोंं का पानी लिखूँ।।
सोचता हु लिखने को तेरे बारे में क्या पैगाम लिखूँ।।
अकेली कटी रातें या ज्योत्शा के संग गुजारी शाम लिखूँ।।
अपनी मोहब्बत की भी एक हँसी कहानी थी।।
जब प्रदीप उसका दीवाना और ज्योत्शा भी उसकी दीवानी थी।।
मेरे डाटने पर वो अक्सर चुप हो जाया करती थी।।
मुझे खोने के डर से मेरे रूठने पर वहीं मुझे मनाती थी।।
पर साथ मेरा पाकर बहुत ज्यादा खुश हो जाती थी।।
खुद के नाम के साथ मेरा नाम लगाकर मेरा सरनेम लगाती थी।।
क्या बताऊँँ वो मुझको कितना चाहती थी।।
वो शादी करेगी मुझसे ये बात अपनी बुआ को बताती थी।।
मेरा चेहरा देखकर सब कुछ समझ जाती थी।।
फिर कसकर मुझे अपने गले से लगाती थी।।
मेरी परेशानियों से वो खुद भी आंसू बहाती थी।।
मेरे दुःख में दुःखी तो मुझे मुस्कुराता देखकर खुश हो जाती थी।।
एक लड़की थोड़ी नटखट सी थोड़ी पागल जो मुझे मुझसे भी ज्यादा चाहती थी।।
कभी कभी मुझ पर अपने सारे हक़ जताती थी।।
अपने नाम के साथ मेरा नाम लगाकर ज्योत्शा प्रदीप सनिशरे कहलवाती थी।।
जिन्दगी में मोहब्बत का सफर धीरे धीरे बढ़ रहा था।।
मेरे गुस्से का असर हमारे रिश्ते पर पढ़ रहा था।।
हमारी अनबन से जुदाई बढ़ रही थी।।
कहती थी एक साल बाद घर वाले शादी कर देंगे शायद वो ग्यारवी में पढ़ रही थी।।
फर्क़ पड़ रहा था जुदाई का हम दोनों में।।
मुझे मेरे हालातो ने उसे उसके चाहने वालोंं ने।।
जिन्दगी के सफर में उसे उससे सौदा करना पड़ा।।
मोहब्बत मुझसे थी पर गले मौत से लगाना पड़ा।।
मेरे न होने पर उसने क्या क्या सहा होगा।।
किसी ने मारे होंगे ताने तो किसी ने बदचलन कहा होगा।।
काश उस वक्त मैंने तुझे यु किसी के कहने पर अकेला छोड़ा न होता।।
तो आज तू मेरी ज्योत्शा और ये प्रदीप तेरा होता।।
न रातो को यु तनहा और रोता बिलखता होता।।
अगर तुझे न छोड़ा होता तो तेरी माँग में मेरे नाम का आज सिंदूर होता।।
और जिन्दगी भी सूकून से गुजरती जाती।।
जब हाथोंं में तेरे मेहंदी मेरे नाम की होती।।
तुझे खोने के बाद तेरे न होने की कीमत समझ आयी है।।
वो छोड़ गई मुझे अकेला अब बस मेरे हिस्से में बची तन्हाई है।।
तेरी वफाओ को कभी भी न भूल पाउगा।।
तेरी मोहब्बत का हिसाब कभी भी लगा नहीं पाउगा।।
तेरी इस हालत के गुनेहगार मै ही तो हु।।
खुदा के सामने मै कैसे अपने ये हाथ उठाऊंगा।।

लेखक✍️प्रदीप सनिशरे # खुशी X18

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